The Subtle Art of Not Giving a F*ck Book Summary In Hindi

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 The Subtle Art of Not Giving a F*ck  Book Summary In Hindi By Mark Manson


The Subtle Art of Not Giving a F*ck  Book Summary In Hindi

The Subtle Art of Not Giving a F*ck Mark Manson


About Book


अगर आप टेंशन और थकान महसूस करते हैं, तो ये बुक आपके लिए है. नॉट गिविंग अ एफ * सीके का मतलब फर्क नहीं पड़ना, नहीं है. ये ऐसे इंसान के बारे में है जिसकी आप सच में परवाह करते हैं, चाहे कुछ भी हो जाए आप उसके लिए लड़ने को भी तैयार रहते हैं. हर चीज़ के बारे में परवाह मत करो. अपना समय और एनर्जी सिर्फ उन लोगों के लिए यूज़ करो जो सच में आपके लिए इम्पोर्टेन्ट हैं. यह बुक किसे पढनी चाहिए


पेरेंट्स, एम्प्लॉईज़, यंग प्रोफेशनल्स, जिन लोगों को स्ट्रेस और घबराहट होती है, वो लोग जिन्हें खुल कर हँसने की ज़रुरत है


ऑथर के बारे में


मार्क मैनसन एक ब्लॉगर और बेस्ट सेल्लिंग बुक के ऑथर हैं. उनकी वेबसाइट पर उन्हें बहुत लोग फॉलो करते हैं हैं जहाँ वो जीवन के चॉइस, रिलेशनशिप और सेल्फ हेल्प के बारे में लिखते हैं. वो एक बिजनेसमैन और पर्सनालिटी डेवलपमेंट कोच भी हैं. उनके ब्लॉग ज्ञान, ईमानदारी और हास्य से भरे हैं.



The Subtle Art of Not Giving a F*ck Mark Manson


अध्याय 1: कोशिश मत कीजिये


चार्ल्स बुकोव्स्की एक शराबी था. एक बहुत बड़ा जुआरी और जिंदगी से हारा हुआ ऐसा इंसान जिसकी सलाह शायद ही कभी कोई लेना चाहेगा. इसलिए तो हम अपनी शुरुवात ऐसे इंसान की कहानी से कर रहे है. बुकोव्स्की शुरू से ही एक लेखक बनना चाहता था मगर उसके काम को सभी न्यूज़पेपर और मेगजीन ने घटिया दर्जे का बताकर उसका मखौल उड़ाया. इस बात से दुखी होकर बुकोव्स्की गहरे डिप्रेशन में चला गया और उसने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे वो एक बहुत बड़ा शराबी बन बैठा. अपनी जिंदगी के करीब 30 साल शराब आर जुए में बर्बाद करने के बाद बुकोव्स्की को एक दिन एक मौका मिला.


एक छोटे पब्लिशिंग हाउस ने उसके काम में दिलचस्पी ली. बुकोव्स्की को बड़ी मुश्किल से एक मौका हाथ लगा था जिसे वो गंवाना नहीं चाहता था. उसने झट से वो कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया. और तब उसने अपनी पहली किताब लिखी. फिर इसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. एक के बाद एक उसने 6 किताबे और लिखी. इसके साथ ही उसने कई सारी कविताएं भी लिखी और उसकी किताबो की 2 मिलियन से ज्यादा कोपियाँ बिकी. ये उसके लिए एक बहुत बड़ी कामयाबी थी. अमेरिकन ड्रीम मे कहा जाता है की हमेशा कोशिश करते रहो कभी हार मत मानो लेकिन बुकोव्स्की की कब्र के पत्थर पर लिखा था "कोशिश मत कीजिये"


बुकोव्स्की के काम की ख़ास बात ये नहीं थी कि हारने के बावजूद उसने कोशिश ज़ारी रखी बल्कि ये है कि उसने खुद को बुरे से बुरे हाल में स्वीकार किया. उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा जब कामयाबी उसके हाथ लगी ना ही वो पहले से अच्छा और सुधरा हुआ इंसान बन गया और ना ही उसके सक्सेसफुल बनने में उसकी अच्छाई का कोई हाथ था. हम सब अपनी जिंदगी में कभी ऐसे दौर से गुज़रते है जहाँ हालात बद से बदतर होते है. जैसे कि मान लीजिये, आपको गुस्सा बहुत ज्यादा आता है. इतना गुस्सा कि आप खुद पे काबू नहीं रख पाते है. और आप इसे काबू नहीं रख पाते ये सोचकर आपका गुस्सा और बढता है. वाह !


ज़रा सोचिये कितने मज़े की बात है कि आपको इस बात पर गुस्सा आता है कि आपको गुस्सा बहुत आता है. आप इस गुस्से से बचने का कोई रास्ता निकालन | चाहते है पर निकाल नहीं पा रहे. तब आप खुद से और अपने इस गुस्से की समस्या से नफरत करने लगते है. जब आप कभी अपने अकेलेपन को लेकर उदास होते हो तो आपके मन में उदासी से भरे ख्याल मंडराने लगते है. आप अपनी उदास जिंदगी और अकेलेपन के बारे में घंटो सोचते रहते है और सोच-सोच कर और भी ज्यादा उदास हो जाते है. तो मेरे दोस्त, इसीको कहते है जहन्नुम का फीडबैक लूप !


ज़रा याद कीजिये कि आपके दादाजी के वक्त में क्या होता


था ? उस वक्त में जब कोई किसी को अपने से बेहतर


देखता तो बेशक कुछ पल उदास होता मगर फिर अपने


काम में लग जाता था ये सोचकर कि यही जिंदगी है.


लेकिन अब अगर 5 सेकंड्स के लिए भी दुखी होते है तो


आपको सबकी जिंदगी अपने से बेहतर लगने लगती है.


आप खुद पे इतने शर्मिंदा हो जाते हो जैसे कि सब कुछ


हार बैठे हो. और फिर अपनी इस शर्मिंदगी से आपको

खुद पे और भी शर्म आने लगती है. शर्मिंदगी के इस गोल चक्कर में आप फंस से रह जाते हो. इसलिए तो ज़रुरत है कि इन बातो को लेकर ज़रा भी परेशान ना हुआ जाए. अगर आप उदास है तो कोई शर्म की बात नहीं, ऐसा सबके साथ होता है. शर्मिंदगी के इस चक्कर यानी लूप से बाहर निकालिए और जो चीज़े आपको परेशान कर रही है उनसे कहिये" भाड़ में जाओ" (don't give a fuck about it).


आपके साथ सब अच्छा ही अच्छा हो यही सोचना सबसे बड़ी बुरी बात है. और अगर फिलोसफ़र एलन वाट्स की माने तो अपने साथ हुए नेगेटिव अनुभवों को स्वीकार करना ही असल में खुद एक बड़ा पोजिटिव अनुभव है. ये बात सुनने में अजीब लगती है मगर यही सच है. जितना ज्यादा आप खुशियों के पीछे भागेंगे, उतने ही ज्यादा दुखी रहेंगे. दुसरे शब्दों में कहे तो ऐसी कोशिश भी ना करे. क्या आपने कभी गौर किया है कि जब आप किसी बात के लिए केयरलेस होते है तो वही चीज़ आपको आसानी से मिल जाती है बजाये कि जब आप उसके पीछे भागते है. जैसे जब आप जिम जाते है तब वर्क आउट करने में आपको काफी दर्द सहना पड़ता है लेकिन इस दर्द का इनाम आपको मिलता है स्ट्रोंग मसल के रूप में. थोड़े से पेन के बदले में आपको एक खूबसूरत बॉडी मिलती है, आपकी हेल्द इम्प्रूव होती है.


इसी तरह जब आप अपने किसी काम में नाकमयाब होते है तो यही हार आपकी लिए किसी फ्यूल की तरह काम करती है और आप अपनी कोशिश में दुगने जोश के साथ फिर से जुट जाते है. दर्द को रोकने की कोशिश करना ही आपको बाद में और भी ज्यादा दर्द का एहसास कराता है. दर्द या हार जो भी आपको मिले उसे रोकिये मत, बसउसकी परवाह करना छोड़ दीजिये. फिर देखिये आपको कोई भी रोक नहीं पायेगा. परवाह ना करने का मतलब ये नहीं कि आप बिना कुछ किये शान्ति से बैठे रहे या एकदम किसी पत्थर की तरह बेअसर हो जाए. क्योंकि सिर्फ मुर्दों को कुछ महसूस नहीं होता, जिंदा आदमी तो सब कुछ फील कर सकता है. और हम आपसे ऐसा करने को नहीं कह रहे. हम तो बस यही कहना चाहते है कि परवाह ना करने का मतलब है कैसे भी हालात आये बस आराम से बैठिये फिर चाहे आपकी सोच औरो से अलग ही क्यों ना हो. आप अलग सोचिये, अलग बनिए यही बेहतर है बजाये कि आप चिकना घड़ा बने. चिकना घड़ा तो समझते होंगे ना आप ? जिस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता. ऐसे लोग बुजदिल और मूर्ख होते है. आपको चिकना घड़ा नहीं बनना है, बस बेपरवाह बनना है जिससे आप फ़ालतू की टेंशन से बचे रहे.


लेकिन कभी-कभी आपको चीजों की परवाह भी करनी पड़ती है तो तब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या है जिसकी आपको सच में परवाह करनी चाहिए ? हमारे लेखक की माँ के साथ ऐसी ही एक घटना घटी थी. दरअसल एक बार उनकी एक सहेली ने उन्हें काफी बड़ी रकम का चूना लगा दिया था. अब अगर लेखक बिलकुल ही बेपरवाह होता तो जो उसकी माँ के साथ हुआ उसकी ज़रा भी परवाह नहीं करता मगर लेखक ने अपनी माँ को भरोसा दिलाया कि वे वकील की मदद लेंगे और उस इंसान को सबक सिखा कर ही रहेंगे. हां उसने ये सब इसलिए किया क्योकि उसे उस इन्सान की परवाह नही थी। He Don't give a F*ck about him.



अध्याय 2: खुशियों के पीछे मत भागिए


पच्चीस सौ साल पहले की बात है. नेपाल में एक राजा हुआ करता था जो अपने बेटे से बहुत प्यार करता था और उसके लिए बड़े-बड़े सपने देखा करता था. वो अपने बेटे को दुनिया की हर चीज़ देना चाहता था ताकि उसे कभी भी किसी चीज़ की कमी ना हो. अपने बेटे को खुश रखने के लिए उसने बहुत बड़ा महल बनवाया जिसके चारो ओर ऊँची दीवारे थी. वो नहीं चाहता था कि उसके बेटे को बाहर की दुनिया के बारे में कुछ भी पता चले. वो उसे हर दर्द, हर तकलीफ से बचा कर रखना चाहता था. महल में राजकुमार के लिए हर सुख-सुविधा मौजूद थी मगर राजकुमार फिर भी खुश नहीं रहता था. वो इस एशो- - आराम से अब उबने लगा था. वो अब महल से बाहर की दुनिया देखना चाहता था.


तो एक दिन मौका देखकर वो महल से बाहर निकल गया. अपने राज्य में घुमते हुए राजकुमार को पहली बार दर्द का एहसास हुआ जब उसने भूखमरी और बिमारी से तडपते हुए गरीब इंसानों को देखा. उन्हें देखकर राजकुमार दुःख में डूब गया. उसे अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया जिसने उसे आजतक इस सच्चाई से अनजान रखा था. उसने फैसला किया कि वो राजपाट छोड़कर भिक्षुक का जीवन जियेगा. और उसके बाद राजकुमार चुपचाप बिना किसी को कुछ बताये महल छोड़कर जंगल में चला गया. कुछ साल जंगल में गुज़ारने के बाद राजकुमार को एहसास हुआ कि उसकी इस कठिन तपस्या और भूखे प्यासे रहने से कोई फायदा नहीं है. ज़रूरी नहीं कि जो चीज़ तकलीफदेह हो वो आपके लिए अच्छी और फायदेमंद हो. उसने ये जाना कि जीवन अपने आप में एक तकलीफ है. अमीर आदमी अपने पैसे की वजह से तकलीफ सहता है और गरीब आदमी इसलिए परेशान रहता है क्योंकि उसके पास पैसे की कमी है. असल बात तो ये है कि ख़ुशी का कोई पैमाना नहीं होता .


कुछ हासिल करने का ये मतलब नहीं कि अब आप हमेशा के लिए खुश रहेंगे. हम तकलीफ इसीलिए सहते है क्योकि इससे हमें इंस्पायर्ड होते है, इससे हमारे अन्दर कुछ बदलाव आते है. और जीवन में बदलाव बहुत ज़रूरी है. हमारे जीवन की तकलीफे हमें लड़ने की ताकत देती है, हम हर हाल में खुद को बचाए रखने की ज़दोज़हद करते है. दर्द ही हमें सिखाता है कि हम चीजों पर ध्यान दे जब हम लापरवाह होते है. इसलिए तो खुशियाँ और सुख सुविधाए हमेशा ही बेस्ट ऑप्शन नहीं होती कभी-कभी दर्द भी ज़रूरी है. यहाँ तक कि साइकोलोजिकल पेन भी बड़े काम की चीज़ है जो हमें भविष्य के बेहतर फैसले लेना सिखाती है. खुशियाँ कभी भी बिना मुसीबतों से लडे नहीं पाई जा सकती है. दुसरे शब्दों में कहे तो परेशानियों का दूसरा नाम ही खुशियाँ है. क्योंकि जब आप अपनी समस्या सुलझा लेते है तो ख़ुशी खुद-ब-खुद आपके चेहरे पर झलकने लगती है. तो इस तरह अपनी तकलीफों को अवॉयड ना करना ही आपकी खुशियों की चाबी है. यहाँ पर ख़ुशी का की-वर्ड असल में प्रोब्लोम्स को सोल्व करना है.

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भावनाओं को हमेशा ही बड़ा चड़ा कर माना जाता है.


हमारे इमोशंस आखिर क्या है ? भावानाये यानी इमोशंस दरअसल हमारा दिमाग ही तो है हमें बताता है कि कुछ गलत हो रहा है और उसे ठीक किया जाना चाहिए. सीधे-सादे शब्दों में कहे तो हमारे नेगेटिव इमोशन हमें एक्शन लेने के लिए मजबूर करते है वहीँ दूसरी तरफ हमारे पोजिटिव इमोशन का मतलब है किहमारा दिमाग हमे सही चीज़ करने के लिए इनाम दे रहा है. अब सवाल ये उठता है कि " आप अपने जीवन में करना क्या चाहते है ?”


इस सवाल में कोई खास बात नहीं है, बहुत ही आम सा सवाल है ये. इसके बजाये सवाल होना चाहिए कि आप अपने जीवन में किस तरह की तकलीफ से गुज़रना चाहेंगे?'


बहुत से लोग नहीं करते मगर आप अपने स्ट्रगल खुद चुनिए. ज़्यादातर लोग सिर्फ बिना किसी तकलीफ के सिर्फ रिवार्ड चाहते है. इससे बुरा और क्या हो सकता है कि बिना कुछ किये आपको सबकुछ मिल जाए. तो अपने लिए खुद ही तकलीफे चुन लीजिये क्योंकि आखिर तो जिंदगी आपको फिर भी दर्द ही देगी, और वो आपके लिए ज्यादा दर्दनाक होगा.


अध्याय 3: आप औरो से अलग नहीं है एक आदमी जिसका नाम जिमी था, हमेशा कोई न कोई बिजनेस आइडिया सोचता रहता था. उसकी जिंदगी बढ़िया गुज़र रही थी. वो अपने माँ-बाप के पैसे पर जी रहा था. जितना वो अपने बिजनेस आइडियाज पर खर्च करता उतना ही पैसा बार में उड़ा देता था. उसका कोई आइडिया कभी भी सफल नहीं हुआ मगर जिस तरीके से वो बाते करता था और खुद पर यकीन रखता था वो बहुत ही प्रभावशाली था. उसका ये अंदाज़ आपको उसका फैन बना देगा फिर भले ही आप उसकी असलियत से वाकिफ ही क्यों ना हो. ये 1960 की बात थी जब इस ख्याल की शुरुवात हुई कि " हम सब अलग और अपने-आप में अनोखे है". अब उस दौर में सबको यही लगता था कि वो कुछ ख़ास है मगर कुछ सालो बाद लोगो को एहसास हुआ कि असल में ऐसा नहीं है. इस दुनिया में हर कोई बेहतरीन करने के लिए नहीं बना है. फेल होना हमारी ग्रोथ का एक ज़रूरी हिस्सा है जिससे हम सबको गुज़ारना पड़ता है. बिना किसी वजह के खुद को खासम-ख़ास समझ लेना बिलकुल उसी तरह होगा जैसे कि एक और "जिमी” पैदा हो गया हो.

AF नहीं देने की सूक्ष्म कला

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सेल्फ एस्टीम की भावनाओं के साथ एक परेशानी ये है कि ये आपकी सेल्फ एस्टीम को इस पैमाने से नापती है कि आप कितना पोजिटिव सोच सकते है जबकि असल में इसे मापने का पैमाना आपके नेगेटिव साइड को महसूस करने की समझ होनी चाहिए. कि आप अपने नेगेटिव साइड के बारे में कितना जानते है. अगर आपको लगता है कि बिना किसी तकलीफ को झेले आप 100% परफेक्ट है तो आप कैसे अपने जीवन की परेशनियाँ दूर कर पायेंगे ? आप अपनी सफलता के सपने ही देखते रहेंगे जो वास्तव में कहीं है ही नहीं. जिंदगी बेहतर कैसे बनाई जाए इसके लिएबजाये कुछ करने के आप सिर्फ सोचते रहेंगे तो कुछ नहीं होने वाला. कई बार हमारे जीवन में कुछ परेशानिया ऐसी होती है जिनका कोई हल नहीं सूझता तब हम खुद को अलग महसूस करने लगते है या तो बुरे या फिर अच्छे ढंग में. हमें लगता है या तो हम बेस्ट है या बहुत बुरे. बहुत से लोग ऐसे मौको पर अच्छाई और बुराई के इन दो एहसासों के बीच झूलते रहते है. हालांकि सच ये है कि ऐसी कोई भी परेशानी : पर्सनल प्रॉब्लम" नहीं है या सिर्फ आपके साथ हीं घट रही है.


ऐसे कई और लोग होंगे दुनिया में जो बिलकुल आप ही के जैसे हालात से जूझ रहे होंगे. ऐसा सोचने से बेशक आपकी तकलीफ कम नहीं हो जायेगी मगर आपको ये ज़रूर पता चल जाएगा कि आप औरो से अलग नहीं है. आजकल ये बहुत आम हो गया है कि अक्सर स्पीकर्स को बेन कर दिया जाता है या स्कूल के करिकुलम से कोई किताब हटा दी जाती है क्योंकि उनसे किसी की भावनाए को ठेस पहुँचा रही थी. ऐसा करना एक तरह से खुदगर्जी है. ये एक सेल्फ- एंटाइटलमेंट की समस्या है. हम से हर कोई अनोखा या हटकर करने के लिए पैदा नहीं हुआ है. ये वाक्य जो आजकल बहुत से इन्फ्लूएशंर कहते सुनाई देते है कि " हम सब में कुछ खास है "


जरा सोचिये कि अगर हम सब अनोखे है तो हम सब तो एक जैसे ही हो गए ना तो अब इसमें अनोखापन कहाँ बचा ? हम जैसे है वैसे ही खुद को स्वीकार करे तो बेहतर होगा. हम सब आम है और ये कोई शर्म की बात नहीं है. इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि हम कामयाब नहीं हो सकेंगे क्योकि हम एवरेज है. सच बात तो ये है कि लोग महान इसलिये बनते है क्योंकि उन्हें खुद में कुछ इम्प्रूव करने की ज़रुरत महसूस होती है. वे महान इसीलिए बन पाए क्योंकि उन्हें लगा कि वे अभी महान नहीं है. उनकी

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अध्याय 4: दुख की कीमत 1944 के दौर में, जापान को लड़ाई में काफी नुकसान हुआ था. इस नुकसान के दो महीने बाद की बात है. ओनाडा, जो कि जापान की लड़ाई में एक लीडर था एक आईलेंड में ही रुक गया जहाँ पर अमेरिकन ने कब्ज़ा किया हुआ था. वो अमेरिकन्स से लड़ता रहा बावजूद इसके कि जापान ने तब तक सरेंडर कर दिया था. उसे ये बात मालूम नहीं थी और वो आइलैंड में खुद के फार्मर्स को शूट करता रहा. जापानी सरकार ने उसे ढूँढने में पूरे तीस साल लगा दिए थे मगर कभी कामयाब नहीं हो पाए थे. उसको कभी कोई पकड़ नहीं पाया था. फिर एक दिन सुजुकी नाम के एक हैप्पी आदमी ने उसे पकड लाने का फैसला किया और सिर्फ 4 दिन बाद ही वो इसमें कामयाब भी रहा. जब बाद में लोगो ने Onoda से पूछा कि वो तीस साल तक क्यो एक आईसलैण्ड में रहा इस Onodo ने कहा कि उसे कभी भी ना हार मान ने का आर्डर दिया गया था इसलिये उसने कभी भी हार नही मानी । सोचना भी अजीब लगता है कि कैसे कोई इंसान अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा क्यो यूजलैस और बेवफूक चीजो पर लगा देता है। जैसे lieutenant Onoda ने अपनी जिंदगी के तीस कीडे खा कर, , गंदगी में सो कर एक ऐसी लडायी लडने में लगा दिये जो हो ही नही रही थी।


खुद को समझना बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कोई प्याज़ होता है. इसकी बहुत सी परते होती है और जैसे-जैसे ये परते उतरती है, आपके आंसू बहते है. इसकी पहली परत है खुद की भावनाओं को जानना और समझना. दूसरी परत होगी ये समझना कि इन भावनाओं की वजह क्या है. एक बार जब हम इन्हें अच्छे से समझ लेते है तो इनपर काबू पाना आसान हो जाता है. और एक बार जब हमें अपनीभावनाओं की पहचान हो जाती है तो इन्हें मनमुताबिक चुना जा सकता है. हम अपने मकसद इन्ही भावनाओं के आधार पर चुन सकते है लेकिन अगर हम गलत मकसद चुन लेते है तो इन सभी फीलिंग्स और इमोशन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. वो इसलिए क्योंकि हम किसी चीज़ की तभी कद्र करते है जब उसके साथ हमारी भावनाए जुडी होती है., कुछ ऐसे आम वैल्यूज़ होते है जो हर किसी के एक परेशानी का सबब है मगर इनका कोई ठोस सोलुशन नहीं होता और ये वैल्यूज़ है:


खुशी: देखा जाए तो ये सबसे बड़ी वैल्यू है मगर हम हर चीज़ सिर्फ ख़ुशी की खातिर तो नहीं करते और जिंदगी कभी भी परफेक्ट नहीं होती, हालांकि लोग कोशिश ज़रूर करते है, आपको दुःख मिलेंगे ही मिलेंगे और अगर आपने इन दुखो से खुद को दूर रखने की फ़िज़ूल कोशिश की तो यकीनन आप और ज्यादा दुखी होंगे. क्योंकि दुःख तो आते रहेंगे बस आपको उनसे कुछ सीखने का तरीका ढूंढना है.


मटरियल सक्सेस: सफलता को कभी भी धन-दौलत से मत आंकिये की आपके पास कितना पैसा है या आपकी बीवी कितनी खूबसूरत है वगैरह इसके बजाये आप कितने ईमानदार है, कितने मेहनती है, औरो के लिए आपके दिल में कितना प्यार है जैसी बाते मायने रखती है नाकि आपका जोड़ा हुआ रुपया-पैसा या गाडी, बंगला. जो लोग अपने पैसे का रौब दिखाते है वे ना सिर्फ छिछोरे होते है बल्कि एक तरह से बेवकूफ भी लगते है.


हमेशा सही होना: ये बात याद रखिये कि हम इंसान है कोई रोबोट नहीं जो हर काम बिलकुल परफेक्ट करेंगे. हमारा दिमाग परफेक्ट बना ही नहीं है, हम कोई ना कोई गलती ज़रूर करते है लेकिन ज़रूरी बात ये है कि अगर होता. आप कितनी बार सही थे इसकी गिनती याद रखना


फ़िज़ूल है इससे आपको कुछ भी नया सीखने को नहीं


मिलेगा.


• पोजिटिव रहना: ये सच है कि पोजिटिव सोच रखने के अपने फायदे है मगर हर बार जिंदगी में सब पोजिटिव और अच्छा ही होगा ये सोच कर चलना आपके लिए परेशानी का कारण बन सकता है. असल जिंदगी में हमें बहुत से उतार-चढ़ाव देखने पड़ते है और आपको ये सच स्वीकार करना ही पड़ेगा. क्योंकि अगर आप इसे नहीं मानते तो फीडबैक लूप के चंगुल में फंस कर रह जायेगे. अगर आप अपने मन में उठने वाले नेगेटिव इमोशंस को रोकने की भरपूर कोशिश करेंगे तो और भी ज्यादा नेगेटिव भावनाओं से घिर जायेंगे. जब आपके मन में कुछ नेगेटिव आता है तो उसे रोकिये मत, बस सोचिये कि अगर ऐसा हो भी गया तो आप उसका सामना कैसे करेंगे.



अध्याय 5: आप हमेशा खुद चुनते है अमेरिकन फिलोसफ़र, विलियम जेम्स अपनी जिंदगी से काफी परेशान रहते थे. क्या-क्या परेशानियां नहीं थी उन्हें. आँखों की बिमारी, कम सुनने की बिमारी और बाकी और भी कई जानलेवा बीमारियों से वे जूझ रहे थे. इन बीमारियों की वजह से उनका ज़्यादातर जीवन घर में बंद होकर ही गुज़रा था. उन्हें पेंटिंग का बड़ा शौक था तो वो सारा दिन पेंटिंग बनाया करते थे. हालांकि किसी को नहीं लगता था कि वे अच्छी पेटिंग बना सकते है. उनके पिता ने उन्हें मेडिकल स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए क्या कुछ नहीं किया मगर वे सब कुछ छोड़कर Amazon Rainforest में एंथ्रोपोलोजिकल एक्स्पेडीशन करने चले गए. हैरानी की बात तो ये थी कि उनकी सेहत ने भी उनका साथ दिया. लेकिन फिर उन्हें स्माल पॉक्स हो गया जिससे वे मरते-मरते बचे.


उन्हें अपना एक्सपीडीशन बीच में ही छोड़ना पड़ा. उनके सभी साथी आगे बड गए थे और वे अकेले ही साउथ अफ्रीका में रह गए. किसी तरह वहां से निकलकर वे न्यू इंग्लैण्ड पहुंचे जहाँ उनके पिता जो पहले से ही उनसे निराश थे, उनका इंतज़ार कर रहे थे. अपने जीवन की तमाम तकलीफो झेलने के बाद एक रात जेम्स ने फैसला किया कि अब से वे अपनी जिंदगी की हर रिसपोंसेबिलिटी खुद लेंगे. और अपने जीवन को बदलने की हर संभव कोशिश करेंगे. उन्होंने ये तक सोच लिया था कि अब अगर उन्होंने हार मानी तो पक्का वे सुसाइड कर लेंगे. खैर, बड़ी बात को छोटा करके हम बताना चाहते है कि विलियम जेम्स ही वो इंसान थे जो अमेरिकन साइकोलोज़ी के जन्मदाता बने. ये कहानी सीख देती है कि अपने कामो की जिम्मेदारी हमें खुद ही लेनी है ना कि दुसरो के भरोसे रहकर बैठना है. अब मान लीजिये कि आपका लाइफ पार्टनर जिसे आप बहुत प्यार करते है, आपसे एक हफ्ते में 30 किलो वजन कम करने को बोलता है वर्ना वो आपको छोड़ कर चला जाएगा. अब ऐसी शर्त सुनकर आपका दिमाग तो ठनक ही जाएगा. क्यों है ना ?


अब सोचिये कि आप जिम जाना शुरू कर देते है, हेल्दी खाना शुरू कर देते है और 30 किलो वजन कम भी कर लेते है. कैसा लगेगा आपको ? बहुत अच्छा ना ? मगर अब आपकी फीलिंग आपके पार्टनर के लिए क्यों बदल गयी ? क्योंकि आपको ऐसा करने के लिए बोला गया था, ये आपने खुद नहीं चुना था. मगर जब आप चीज़े खुद अपनी मर्ज़ी से चुनते है तो पूरी जान लगा देते है फिर चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आये. और उन मुश्किलों से गुज़र कर आप बहुत अच्छा महसूस करते है. इसलिए अपनी परेशानियां भी खुद ही चुनिए, क्योंकि जिंदगी में कोई भी समस्या कब और कैसे आ जाए कोई नहीं जानता.


ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive-compulsive disorder) जिसे आमतौर पर ओसीडी भी कहा जाता है एक तरह का न्यूरोलोजिकल और जेनेटिक डिसआर्डर होता है. इस बिमारी का कोई ठोस इलाज़ अभी तक नहीं मिल पाया है हालांकि इसे कुछ हद तक मैनेज किया जा सकता है. तो जो लोग इस बीमारी से जूझ रहे है वे कैसे इस बिमारी को मैनेज करते होंगे? इसका जवाब है अपने विचारों को बदल के. जो लोग जर्म्स के डर से सारा दिन हाथ धोते रहते है उन्हें सीखना होगा कि हम चाहे जो कर ले जर्म्स हमेशा हमारे आस पास रहते है, इन्हें पूरी तरह से नहीं हटाया जा सकता है.

कुछ और लोग जो इस डर से कि उनका परिवार मर जाएगा अगर वे एक ही जगह पर बार-बार टैप नही करेंगे, उन लोगो को ये समझने की जरूरत है कि मौत एक दिन सबको आनी है. जो जन्म लेता है वो एक दिन मरता ही है और वे इसे किसी भी सूरत में नहीं रोक सकते. बजाये एक ही विचार में उलझने के जिंदगी में और भी बहुत कुछ मीनिंग फुल किया जा सकता है. ऐसे विचार आते है तो आने दे उन्हें रोकिये नहीं मगर अपने विचारों की दिशा बदलने की कोशिश ज़रूर कीजिये. ऐसे लोग जिंदगी से उम्मीद खोने के बजाय इन विचारों के साथ जीना सीख ले तो अपनी जिंदगी बेहतर बना सकते है.


अध्याय 6: आप जो भी सोचते है गलत है यू आर रोंग अबाउट एवरीथिंग (और मै भी ) 


अधूरी यादे अपने आप में एक मुसीबत है, आप किसी चीज़ पर पूरा यकीन रखते है पर वो बात झूठ निकलती है. क्योंकि वो एक झूठी याद होती है जो आप अपनी यादो में समाये रहते है। मेरेडिथ मारन जो एक लेखक और जर्नलिस्ट थी, एक बार उन्होंने आरोप लगाया कि जब वो बच्ची थी तो उनके पिता ने उनका बलात्कार किया था. उन्हें अचानक से एक दिन ये बात याद आई मगर इस बात से उनकी फॅमिली लाइफ बर्बाद हो गयी और सालो बाद सच सामने आया कि ये महज़ उनके मन की एक कल्पना थी.


बात बहुत पुरानी नहीं है जब साइंटिस्ट माना करते थे कि आग दरअसल फीलोगिस्टन (Phlogiston) नामक चीज़ से बनती है और औरतो को लगता था कि कुत्ते का पेशाब चेहरे पर मलने से वे सदा जवान बनी रहेगीं. जब आप किसी से प्यार करते है तो सारी जिंदगी उसके साथ बिताने के सपने देखते है. फिर जब आपका ब्रेक-अप होता है तो आपका प्यार नाम की चीज़ से यकीन उठ जाता है, लेकिन आप इसके बावजूद फिर से प्यार में पड़ते है, फिर से किसी के साथ जिंदगी बिताने की सोचते है. असल में हम सब चीजों को लेकर कभी ना कभी गलत होते ही है। और इसे स्वीकारने में कैसी शर्म ? ये तो सबके साथ होता है. हम सोचते कुछ और है, होता कुछ और है. और देखा जाए तो इससे एक तरह की सीख ही मिलती है हमें.


पुख्ता यकीन हमेशा ही विकास यानी ग्रोथ का दुश्मन ही रहा है. कुछ नया सीखने के लिए हमें अपनी इम्परफेक्शन


को accept करना ही होगा. अगर हम मान लेंगे कि हम परफेक्ट है तो कुछ भी नया नहीं सीख पायेंगे. हम अपने ही दायरे में सिमट कर रह जायेंगे. जैसे उदाहरण के लिए सांइस में कुछ भी पुख्ता नहीं है यानी साइंस किसी भी चीज़ के लिए ठोस यकीन नहीं रखता 



अध्याय 7: फेल होना एक कदम आगे बढना है:


हमारी इस किताब के लेखक खुद को बड़ा किस्मतवाला समझते है. जानते है क्यों ? जब वे ग्रेजुएट हुए थे तो उस वक्त ग्रेट रीसेसन (Recession) चल रहा था. उनकी रूममेट तीन महीने का भाड़ा उनके सर पर डाल कर गायब हो गयी. अब लेखक को इन चीजों से निबटने में मुश्किल तो आई मगर उन्होंने कोशिश की उनके सर ज्यादा कर्ज़ ना चढ़े. वे खुद को खुशकिस्मत समझते है क्योंकि उन्होंने फेलियर होने के बावजूद इस दुनिया के तौर-तरीके सीख लिए थे. उन्हें हर चीज़ का एक्स्पीरीयेंस हो चूका था क्योंकि वे पहले से ही रॉक बॉटम में थे, अब उससे बुरा और क्या हो सकता था. उसके बाद जो भी उनके साथ होता बेहतर ही होता.


महान पेंटर पिकासो का एक किस्सा मशहूर है. एक बार बूढ़े पिकासो एक कैफे में बैठकर अपनी कॉफ़ी पी रहे थे. कॉफ़ी पीते हुए वे नेपकिन पर कुछ चित्रकारी भी करते जा रहे थे. चित्र बना लेने के बाद वे उसे फेंकने ही जा रहे थे कि वहां बैठी एक औरत ने उनसे उस नेपकिन को खरीदने की गुजारिश की. पिकासो मान गए और बदले में 20,000$ मांगे. वो औरत उस छोटे से नेपकिन की इतनी बड़ी रकम सुनकर हैरान रह गयी. उसने इतने पैसे देने से मना कर दिया और कहा कि इसे बनाने में उन्हें सिर्फ 2 मिनट लगे है. इस पर पिकासो ने जवाब दिया कि उन्हें चित्रकारी सीखने में 60 साल लगे थे ना कि 2 मिनट. कहने का मतलब है कि इस लायक बनने के लिए वे ना जाने कितनी बार फेल हुए होंगे, हारे होंगे.


क्योंकि सफलता एक दिन में नहीं मिलती. बच्चे कभी भी चलने की कोशश करना नहीं छोड़ते फिर चाहे वो हज़ार बा ही क्यों ना गिरे हो. क्यों? क्योंकि उन्हें अभी इस बात का इल्म नहीं है कि फेल होना क्या होता है. हम मे से बहुत लोग फेल होने से बहुत डरते है मगर सच तो ये है कि बिना फेल हुए या बिना ठोकर खाए आप सफल हो ही नहीं सकते. अपने गोल ऐसे चुने कि आप उन्हें कंट्रोल कर सके ना कि वो आपको पैसा कमा कर दे रहे हो या लोगो को खुश कर रहे हो या नहीं क्योंकि अपने गोल पर आपका कण्ट्रोल नहीं होगा तो वो आपको कण्ट्रोल करेगा.


जिंदगी दर्द का दूसरा नाम है, ये आपको सिखाता है कि आप कैसे और बेहतर बने. फिर चाहे ये कितना ही डरावना क्यों ना हो, दर्द को अपने जीवन में आने दे. ये आपको और भी मज़बूत बनाएगा. अगर आप कुछ हासिल करना चाहते है लेकिन उसके लिए पूरी तरह से मोटीवेटेड नहीं है तो सोचिये कि आप जीतने नहीं हारने वाले है. खुद को हारा हुआ पहले से ही महसूस कर लीजिये. रही बात मोटिवेशन क्या है? बस एक कल्पना है. एक ऐसा लूप जिसका कोई छोर नहीं है. तो सच में मोटीवेट होने के लिए आपको इसके लिए काम करना पड़ेगा. तभी जाकर आप सच में कुछ हासिल करने के लिए पूरी तरह से मोटिवेट हो पाएंगे. इसी को लेखक ने "डू समथिंग प्रिंसिपल " कहा है.


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